अनुष्ठान किसे कहते हैं व्रत क्या है? anushthaan kise kahate hain vrat kya hai?

कैसे हो मित्रो ? आप सभी का Instentsolution.com पर हार्दिक अभिनन्दन है।  आज हम आपको बतायंगे की, अनुष्ठान क्या होता हे?व्रत क्या है। 



 अनुष्ठान किसे कहते हैं ?

जब कोई भी पूजा या मंत्र का जाप किया जाता है। तो उसे पूरी निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। किसी भी पूजा या मंत्र का उच्चारण करने के लिए जो नियम बताए गए हैं। उन्हें उसी क्रम में निष्ठाबद्ध तरीके से करना ही अनुष्ठान कहलाता है। अर्थात कहने का मतलब यह है, कि अगर हमें कोई पूजा करनी है। तो उसे पूरी लगन के साथ करना चाहिए। उस पूजा से संबंधित जो भी नियम और विधि बताई गई है। उसे उसी के अनुसार करना ही अनुष्ठान कहलाता है। 

ऐसे बहुत से नियम होते हैं। जो पूजा या मंत्र उच्चारण करने के लिए बताए जाते हैं। जैसे कम बोलना, समय पर पूजा करना, स्नान करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, एक निर्धारित समय पर सो जाना और अगले दिन एक निर्धारित समय पर उठना। यह सब नियम होते हैं। इन नियमों का कठोरता पूर्वक तरीके से ही पालन करना अनुष्ठान कहलाता है। 

अनुष्ठान कैसे करना चाहिए

दोस्तों शास्त्र के अनुसार बताया गया है, कि जो व्यक्ति स्वयं अनुष्ठान करता है। वह सर्वोत्तम होता है। इसलिए अगर आप कोई अनुष्ठान करना चाहते हैं। तो उसे स्वयं करें। तो उत्तम होगा। अगर आप किसी को अपना गुरु मानते हैं। तो अपने गुरु की आज्ञा पाकर उनके साथ अनुष्ठान करना उत्तम होता है। अगर आप किसी ब्राह्मण या पंडित के साथ अनुष्ठान करवाते हैं। तो यह बहुत ही अच्छा होता है। जो शास्त्रों के अनुसार उत्तम माना जाता है। 

अनुष्ठान किस स्थान पर करना चाहिए

जब कोई व्यक्ति अनुष्ठान करवाता है। तो उसके मन में यह सवाल जरूर उठता है।  कि अनुष्ठान करने के लिए कौन सा स्थान उत्तम रहता है। दोस्तों शास्त्रों के अनुसार ऐसे बहुत से स्थान हैं, जो अनुष्ठान कराने के लिए उत्तम बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार अनुष्ठान करने के लिए स्थान का महत्व बताया गया है। क्योंकि स्थान का हमारे अनुष्ठान पर प्रभाव पड़ता है। जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। 

इसलिए सही स्थान पर ही अनुष्ठान करना चाहिए। शास्त्रो के अनुसार जैसे कहीं पर तुलसी का पेड़ है। तो वहां पर अनुष्ठान कर सकते हैं। नदी के तट के किनारे भी अनुष्ठान कर सकते हैं। कहीं पर सिद्धियां पीठ हो तो वहां अनुष्ठान करना उत्तम होता है। मंदिर में भी अनुष्ठान होता है। पीपल के पेड़ के नीचे अनुष्ठान करने से इच्छा फल की प्राप्ति होती है। आंवले के पेड़ के नीचे भी अनुष्ठान किया जा सकता है। अगर कहीं पर यह स्थान ना हो तो घर पर ही अनुष्ठान करना चाहिए। जिसका बहुत ही उत्तम फल मिलता है। 

अनुष्ठान के समय क्या खाना चाहिए

जब कोई अनुष्ठान किया जाता है, तो उसके करने के साथ-साथ खाने पर भी ध्यान दिया जाता है। शास्त्र के अनुसार ऐसी बहुत सी चीजें होती है। जो अनुष्ठान के समय नहीं खाई जा सकती। इसलिए आप जब भी अनुष्ठान करें, तो पहले इन चीजों का ज्ञात होना बहुत जरूरी होता है। कहा गया है, कि अनुष्ठान के समय केवल और केवल फल ही ग्रहण करने चाहिए। ताकि अच्छा फल प्राप्त हो सके। 

इसके अलावा गाय का दूध, घी , दही सफेद तिल भी खा सकते हैं। अगर आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। अगर आप अस्वस्थ है। तो अपने स्वास्थ्य के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। जब हम अनुष्ठान करते हैं, तो हमें कभी भी कांसे के बर्तन में भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए। ऐसे करने से अनुष्ठान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अनुष्ठान के वक्त जब मंत्र का जाप किया जाता है, तो किसी और चीज का ध्यान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। 

अनुष्ठान कब करवाना चाहिए

अक्सर देखा गया है, कि लोग अनुष्ठान तभी करवाते हैं। जब किसी के यहां शादी या जन्मदिन होता है। इसके अलावा लोग जब नया घर बनाते हैं। तब भी अनुष्ठान करवाते हैं। अनुष्ठान करते वक्त 108 बार मंत्रों का जाप किया जाता है। 


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