दृष्टि दोष क्या है यह कितने प्रकार के होते हैं | drshti dosh kya hai yah kitane prakaar ke hote hain
हेलो मित्रों कैसे हैं, आप सब। आप सभी का हमारी साइट instentsolution.com पर बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों आज हम आपको दृष्टि दोष के बारे में बताने जा रहे हैं।
आज हम आपको बताएंगे की, दृष्टि दोष क्या होते हैं ? यह किन कारणों से होते हैं ? निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष को दूर करने के लिए किस प्रकार के लेंस का प्रयोग किया जाता है। चलिए दोस्तों शुरू करते हैं।
दृष्टि दोष क्या होते हैं ?
जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती रहती है। हमारे देखने की क्षमता कम होने लगती है। अक्सर देखा गया है, कि आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है। इसी को ही दृस्टि दोष कहते हैं। अर्थात कहने का मतलब यह है, कि जब आंख से स्पष्ट रूप से ना दिखाई दे। तो उसमें दोष उत्पन्न हो जाता है। जिसे दृष्टि दोष कहते हैं। दृष्टि दोष पांच प्रकार के होते हैं।
- निकट दृष्टि दोष
- दूर दृष्टि दोष
- जरा दूरदर्शिता
- अबिंदूकता
- वर्णाधंटा या वर्णाधार दृस्टि दोष
- निकट दृष्टि दोष
जो व्यक्ति निकट दृष्टि दोष से ग्रसित होता है। उसे पास की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती है। परंतु दूर की वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती। हमारे देखने की क्षमता एक निश्चित दूरी तक होती है। निकट दृष्टि दोष वाले व्यक्ति को एक निश्चित दूरी से आगे की वस्तुएं नहीं दिखाई देती। यह निश्चित दूरी 25 सेंटीमीटर होती है।
कारण:- अगर निकट दृष्टि दोष के कारणों की बात की जाए। तो यह दो प्रकार के हो सकते हैं।- हमारे जो नेत्र में लेंस होते हैं। उनके पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या बढ़ जाती है। जिससे लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है। जब फोकस दूरी कम हो जाती है, तो हमें ज्यादा दूर की वस्तुएं स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती है।
- हमारे आंख में जो लेंस होता है। उसके और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाती है। जो निकट दृष्टि दोष का एक मुख्य कारण है।
निवारण:- जब किसी व्यक्ति को निकट दृष्टि दोष की बीमारी हो जाती है। तो उसे दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है। निकट दृष्टि दोष से ग्रसित व्यक्ति को अवतल लेंस वाले चश्मे को दिया जाता है।
ताकि वह आंखों पर लगाकर स्पष्ट रूप से देख सके। आंखों पर अवतल लेंस के चश्मे लगाने पर अनंत पर रखी हुई वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर स्पष्ट रूप से बन जाता है। जिससे आपको वस्तु स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है।
- हमारे जो नेत्र में लेंस होते हैं। उनके पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या बढ़ जाती है। जिससे लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है। जब फोकस दूरी कम हो जाती है, तो हमें ज्यादा दूर की वस्तुएं स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती है।
- हमारे आंख में जो लेंस होता है। उसके और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाती है। जो निकट दृष्टि दोष का एक मुख्य कारण है।
2. दूर दृष्टि दोष
जिस व्यक्ति को दूर दृष्टि दोष की बीमारी होती है। उस मनुष्य को दूर की वस्तुएं तो साफ दिखाई देती है। लेकिन पास की वस्तुएं साफ नहीं दिखाई देती। अर्थात कहने का मतलब यह है, की नेत्र का जो निकट बिंदु होता है। वह 25 सेंटीमीटर होता है। लेकिन दूर दृष्टि दोष में यह बिंदु 25 सेंटीमीटर से अधिक दूर हो जाता है। इसीलिए अगर इस दोष से ग्रसित व्यक्ति कोई पुस्तक पढ़ता है। तो उसे 25 सेंटीमीटर आगे रखनी पड़ती है।
कारण:- अगर किसी व्यक्ति को दूर दृष्टि दोष हो गया है। तो उसके दो कारण हो सकते हैं, जैसे
- हमारी आंख में जो लेंस होते हैं। उनकी पृष्ठो की वक्रतात्रिज्या कम हो जाती है। जिससे नेत्र की लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाती है।
- हमारी जो आंख होती है, उसके गोले का व्यास कम हो जाता है। जिस कारण आंख में उपस्थित लेंस और रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाती है।
निवारण:- दोस्तों जब किसी व्यक्ति को दूरदृष्टि की बीमारी हो जाती है। तो उसकी इस बीमारी को ठीक करने के लिए उत्तल लेंस के चश्मों का प्रयोग किया जाता है। दूर दृष्टि दोष से ग्रसित व्यक्ति को उत्तल लेंस वाले चश्मो के उपयोग करने के लिए कहा जाता है।उत्तल लेंस के चश्मा लगाने पर व्यक्ति की दूरदृष्टि की बीमारी ठीक हो जाती है।
3. जरा दूरदर्शिता
दोस्तों जब किसी व्यक्ति की आयु बढ़ जाती है। तो उसकी आंखों की मांसपेशियां कमजोर होने लगती है। जिस कारण से हमारी आँखों से देखने की क्षमता घट जाती है। इस कारण से कुछ व्यक्तियों के निकट बिंदु की दूरी ज्यादा हो जाती है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो बिना चश्मे के बाद की वस्तु नहीं देख सकते हैं।
आंखों में उपस्थित इस दोष को जरा दूरदर्शिता कहते हैं। ऐसे भी व्यक्ति होते हैं, जिनमें दूर दृष्टि दोष व् निकट दृष्टि दोष दोनों एक साथ हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को दुइफोकसी लेंस के चश्मों का उपयोग करने के लिए दिया जाता है। इस प्रकार के चश्मो में उत्तल लेंस और अवतल लेंस दोनों होते हैं।
इस चश्मे के ऊपर वाले भाग में अवतल लेंस होता है। जबकि नीचे वाले भाग में उत्तल लेंस होता है। जब उस व्यक्ति को दूर की वस्तु देखनी होती है, तो वह चश्मे के ऊपरी भाग का उपयोग करता है। और जब नजदीक की वस्तुएं देखनी होती है, तो नीचे वाला भाग इस्तेमाल करता है।
4. अबिंदूकता
दोस्तों जब मनुष्य को उसी के सामने रखी दो अलग-अलग वस्तुएं, एक जो नीचे रखी हो। दूसरी जो ऊंचाई पर हो। उन दोनों को एक साथ देखने में कठिनाई होती है। अगर किसी व्यक्ति को दोनों चीजों को देखने पर धुन्दली दिखाई दे। अर्थात उनमें विभेद ना कर सके। तो उस व्यक्ति को अबिंदुकता दोष होता है।
यह दोष उन व्यक्तियों को होता है। जिनकी आंखों का कॉर्निया वाला भाग गोल नहीं होता है। इस प्रकार के दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लैंस का प्रयोग किया जाता है। ऐसे व्यक्ति जो इस दोष से पीड़ित होते हैं। उन्हें बेलनाकार लेंस से बने चश्मे प्रयोग करने के लिए दिए जाते हैं।
5. वर्णाधंटा या वर्णाधार दृस्टि दोष
दोस्तों जिन व्यक्तिओ को रंगों में विभेद कर पाने में कठिनाई होती है। उन्हें वर्णाधानता रोग पाया जाता है। जो व्यक्ति वर्णाधानता दृष्टि दोष से पीड़ित होते हैं। वे व्यक्ति लाल और हरे रंग में विभेद नहीं कर पाते है।
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इस रोग में हमारी आंख में उपस्थित शंक्वाकार कोशिकाएं संख्या में कमी हो जाती है। और हम जानते हैं, कि शंक्वाकार कोशिकाओं की सहायता से ही हम रंगों को देख पाते हैं। जिन व्यक्तियों में शंक्वाकार कोशिकाओं की संख्या में कमी हो जाती है। तो वे वर्णआधार दृष्टि दोष के शिकार हो जाते हैं।
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